देवास। प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं इन्हीं में से एक है देवास जिले की हाटपिपल्या विधानसभा। यहां भाजपा के मनोज और कांग्रेस के राजवीर में कांटाजोड़ टक्कर है। उपचुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले यहां सीएम शिवराज 1041 करोड़ के विकास कार्यों के शिलान्यास, लोकार्पण और शुभारंभ का पिटारा खोल चुके हैं उसके बावजूद यहां मुकाबला रोमांचक है।
भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के नेता यहां अपनी अपनी जीत का (दिखावटी) दावा तो कर रहे हैं, किंतु मन सभी के आशंकित हैं… क्योंकि मतदाता इस बार मौन है.., जातीय समीकरण बिगड़े हैं… भितरघात कांग्रेस और भाजपा दोनों ही तरफ सिर चढ़कर बोल रहा है… । जीत को लेकर कांग्रेस डरी हुई है… वही भाजपा भयभीत है…। यही वजह है कि यह सीट अब प्रतिष्ठा पूर्ण बन गई है और यहां शिवराज और सिंधिया बार-बार आ रहे हैं… कभी सभाएं ले रहे हैं… तो कभी रोड शो कर रहे हैं…।
बात भाजपा की करें तो हाटपिपलिया क्षेत्र में मनोज चौधरी के लिए शिवराज और सिंधिया ने बहुत पहले से तैयारी शुरू कर दी थी।
यहां से भाजपा से तीन बार विधायक रहे पूर्व मंत्री दीपक जोशी के बगावती सुर के चलते उनकी मान मनुव्वल का दौर चला…, शिवराज सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय सहित प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के कई दिग्गजों की समझाइश के बाद दीपक माने तो, किंतु भोपाल में अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ उन्होंने शिवराज के समक्ष पहुंचकर अपनी बात भी रखी। हाटपिपलिया में दीपक जोशी के पिता पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के प्रतिमा अलंकरण समारोह में शिवराज और सिंधिया दोनों ही आए थे। इसी दौरान हाटपिपलिया क्षेत्र से अपनी किस्मत आजमाने का सालों से सपना संजोए बैठे भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष नंदकिशोर पाटीदार, रायसिंह सेंधव, नरेन्द्रसिंह राजपूत और बहादुर मुकाती जैसे जमीनी पैठ रखने वाले नेताओं को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी। इन्हें मनाने के लिए देवास विधायक गायत्री राजे पंवार सहित कई दिग्गज नेताओं को लगाया गया। देवास विधायक गायत्री राजे पवार के पास मनोज चौधरी को जिताने की जिम्मेवारी है… श्रीमती पंवार और उनके पुत्र विक्रम राव पवार ने जब से यह जिम्मेदारी संभाली तब से बगावत के सुर बाहर तो नहीं आए किंतु माना जा रहा है कि अभी भी हाटपिपलिया विधानसभा क्षेत्र में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है।
वही कांग्रेस से भाजपा में आए मनोज चौधरी के साथ उनके तमाम समर्थक भी भाजपा में आए। जिनकी सक्रिय गतिविधि के चलते भाजपा में वर्षों से काम कर रहे स्थानीय कार्यकर्ताओं को तवज्जो मिलने और नहीं मिलने को लेकर अंदर ही अंदर आग सुलगने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता..। यही वजह है कि हाटपिपलिया विधानसभा सीट शिवराज और सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा पूर्ण बन गई है और वह कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते…। माना जा रहा है की यही वजह है कि आए दिन शिवराज और सिंधिया हाटपिपलिया विधानसभा क्षेत्र में पहुंच रहे हैं।
हाल ही में सिंगावदा में मनोज चौधरी के समर्थन में सभा करने आए सिंधिया को मंच से कहना पड़ा कि आप लोगों ने अगर मनोज चौधरी को विधायक बनाया तो मानिए आपने यहां से शिवराज और सिंधिया को विधायक बनाया…। यहां शिवराज भी कह चुके हैं की अगर यहां से मनोज जीतेगा तो मामा परमानेंट मुख्यमंत्री बना रहेगा…।
अब बात कांग्रेस की करें तो यहां से राजवीर सिंह बघेल अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। विधानसभा का उनका यह पहला चुनाव है। हालांकि सोनकच्छ नगर पंचायत में वह तीन बार नगर पंचायत अध्यक्ष रहे हैं। जब कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर वह निर्दलीय चुनाव लड़ कर भी जीते हैं। किंतु हाटपिपलिया विधानसभा क्षेत्र में उनकी पहचान उनके पिता राजेंद्र सिंह बघेल से है। राजेंद्र सिंह बघेल का नाम देवास जिले के कांग्रेस के दिग्गजों में शुमार है। वह तीन बार हाटपिपलिया से विधायक रहे हैं। हाटपिपलिया विधानसभा में अच्छा दबदबा रखने वाले राजेन्द्र सिंह बघेल के पास हाटपिपलिया विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्ताओं की अच्छी खासी फौज है। सोनकच्छ से विधायक और पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा और राजेन्द्र सिंह बघेल एक दूसरे के धुर विरोधी रहे हैं किंतु यह उपचुनाव कई नए समीकरण लेकर सामने हैं। इस चुनाव में पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा राजवीर के समर्थन में अपने समर्थकों के साथ पूरी तरह भिड़े हैं। किंतु एक ही दल के दो प्रतिद्वंदियों के गठजोड़ से कई कार्यकर्ता आहत है…, जिन्होंने अपने नेताओं के लिए आपस में कई जगह संबंध खराब किए किंतु दिग्गजों का मिलन तो हुआ पर कार्यकर्ताओं का आपसी मिलन अभी भी नहीं हो पाया है। दूसरा कांग्रेस में स्टार प्रचारकों का अभाव स्पष्ट नजर आ रहा है किंतु जनसंपर्क के मामले में राजवीर और उनके समर्थक जी-जान से भिड़े हैं।

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कुल मिलाकर हाटपिपलिया विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों का मुकाबला बड़ा रोमांचक है। जीत के दावे तो दोनों ही दल के नेता कर रहे हैं किंतु मन ही मन आशंकित नजर आ रहे हैं। यह कहा जा सकता है की राजवीर के लिए विधानसभा की डगर कठिन है… तो मनोज के लिए भी आसान नहीं…।