कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड काल, अघोषित छूट नहीं.., सोशल डिस्टेंसिंग और पुख्ता प्लानिंग की दरकार…

( दिलीप मिश्रा )
कोविड-19 कोरोनावायरस के संक्रमण का ऐसा दौर, जिससे देश ही नहीं…, अपितु दुनिया थम सी गई। हमारे यहां लॉक डाउन का तीसरा चरण समाप्ति की ओर है। लॉक डाउन के पहले चरण में जो सख्ती का दौर देखने को मिला.., वह दूसरे में नहीं…, और जो दूसरे दौर में थी, वह तीसरे दौर में नगण्य हो गई। बात मध्यप्रदेश के देवास की करें तो लॉक डाउन के तीसरे चरण में इस औद्योगिक नगरी देवास की करीब 75 औद्योगिक इकाइयां शुरू हो चुकी है। किसानों को दी गई राहत के चलते कृषि उपज मंडियों में किसानों की आवाजाही बढ़ गई है। कहने को तो देवास कोरोना संक्रमण में रेड जोन का जिला है…, बावजूद इसके लोग नियम कायदों को तोड़ते…, सरकारी अपीलो को नजरअंदाज करते…, जगह-जगह भीड़ के रूप में जमा होते नजर आ रहे हैं।  पूर्ण बंदी लागू होने से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को अब और सहन कर पाना आसान नजर नहीं आ रहा। शायद यही वजह है कि शासन प्रशासन के जिम्मेदारों ने रेड झोन में होने के बावजूद औद्योगिक नगरी देवास में अघोषित रूप से खुली छूट दे दी है। गेहूं खरीदी केंद्र साइलो सेंटर की बात करें.., तो वहां किसानों की बेतहाशा भीड़ उमड़ रही है… ट्रैक्टर ट्रालियों से सड़के जाम हो रही हैं… कृषि उपज मंडी में कहीं सोशल डिस्टेंसिंग देखने को नहीं मिल रही… बैंकों के सामने भीड़ उमड़ रही है… वही राशन और भोजन के लिए चौराहे चौराहे पर महिलाओं के झुंड सोशल डिस्टेंसिंग को  धता बताते देखे जा सकते हैं…। देवास शहर में मोहल्ले मोहल्ले सब्जी बेचने वालों को कुछ घंटों की छूट क्या दी गई…, शहर में सब्जी के ठेलों की बाढ़ सी आ गई… सब्जी वाले तो कम किंतु अटाले वाला…, पंचर वाला… कामकाज के दिनों में चौराहे पर फुर्सत काटने वाला…, हर कोई सब्जी का ठेला लेकर निकल पड़ा। हालात यह हो गए की हर गली मोहल्ले में जगह-जगह सब्जी के ठेले और उन पर उमड़ती भीड़ आम बात हो गई।
माना कि पूर्ण लाक डाउन के चलते अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा है…। यह भी सही है की कोरोनावायरस के डर से ज्यादा समय तक औद्योगिक इकाईयों को बंद नहीं रखा जा सकता… व्यवसायिक गतिविधियां भी शुरू करना जरूरी है…। जैसे कि बातें उठ रही की कोरोना संक्रमण विषाणु के साथ जीने की आदत डालना होगी…। स्वाइन फ्लू, डेंगू, मलेरिया, दिमागी बुखार, आदि के विषाणु  के साथ जीने की आदत हम डाल चुके हैं। उसी तरह कोरोना वायरस के साथ जीने की आदत डालनी ही होगी,  क्योंकि यह विषाणु अभी खत्म होता नजर नहीं आता…।
किंतु इसका यह मतलब तो नहीं कि लोगों को मनमाने तरीके से घूमने-फिरने… भीड़ जमा करने… सोशल डिस्टेंसिंग को धता बताते हुए संक्रमण फैलाने की खुलेआम छूट दे दी जाए…। जैसे कि आशंका जाहिर की जा रही है कि आने वाले एक-दो महीनों में कोरोना का प्रकोप अपने चरम पर होगा… इसे देखते हुए कोरोना की साइकल को ब्रेक करने के लिए सुरक्षात्मक उपायों पर अमल कराने के साथ-साथ प्रशासनिक और स्वास्थ्य संबंधी ना सिर्फ तैयारियां बल्कि ठोस योजनाओं की महती आवश्यकता है। इंदौर में जिस तरह से एमवायएच और सुपर स्पेशलिटी सेंटर में 1400 बेड का इंतजाम किया गया है। उज्जैन में भी काफी अच्छे इंतजाम किए जा रहे हैं… इसकी तुलना में देवास में शासन प्रशासन की कोई प्लानिंग नजर नहीं आ रही है, जबकि आज जरूरत आने वाले समय में हर हालात से निपटने की प्लानिंग की है।
लॉक डाउन के शुरुआती दोनों चरणों में जिस तरह लोगों को सड़कों पर आने से रोका गया, इसी का नतीजा रहा की डेढ़ महीने में देवास जिले में कोरोना संक्रमित मरीज 28 रहे…, पर लाक डाउन के तीसरे चरण में लोगों को दी गई अघोषित छूट में लोग जिस तरह से एकदम से बाहर आए उसी का परिणाम रहा की पिछले 1 सप्ताह में 27 मरीज कोरोना संक्रमित पाए गए और देवास शहर का लगभग हर कोना इससे प्रभावित नजर आने लगा। कोरोना की साइकिल को ब्रेक करने के लिए लोगों को जागरूक होना…, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को आत्मसात करना तो जरूरी है ही, किंतु इसका पालन कराना और पालन कराने के लिए थोड़ी प्रशासनिक सख्ती भी जरूरी है।

Rai Singh Sendhav

संपादक

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