जीवन मे धर्म और सत्कर्म की नीति पर चलना चाहिए-संत श्री

राकेश चौहान पिंटू/आलोट
आलोट । शास्त्र नीति पर चलने से जहाॅ सुख शांति मिलती है तो वही मनमर्जी की नीति चलाने से तन और मन दोनों दुःखी होते है, इसलिए मनुष्य को अपने जीवन मे धर्म और सत्कर्म की नीति पर चलना चाहिए, हालांकि इस मार्ग पर कुछ कष्ट, तकलीफें और अवरोध भी आते है लेकिन भगवान की कृपा से वे सब जल्द दूर भी हो जाते है ।

Rai Singh Sendhav

यह विचार आचार्य जितेन्द्रकृष्णजी महाराज ने राधा-कृष्ण भक्त मंडल विक्रमगढ व्दारा ओंकारेश्वर महादेव मंदिर परिसर मे आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह के तीसरे दिन बुधवार को कथा वाचन के दौरान व्यक्त किये । उन्होंने कहा कि परमात्मा की असीम कृपा से हमे कथा, सत्संग का लाभ मिलता है, लेकिन यदि हमारा ध्यान घर, परिवार, दुनियादारी की मोहमाया मे ही फंसा रहा तो फिर परमात्मा से निकटता पाना संभव नही होगा । इसलिए कथा मे बताई गई अच्छी बातों को जीवन मे उतारने का प्रयास करें ताकि सांसारिक मोहमाया से छुटकारा मिल सकें ।

उन्होंने कहा कि वर्तमान मे कुछ घरों मे बडे-बुजूर्गो को मान सम्मान नही मिलता है जो बहुत गलत होता है, क्योंकि जिनके घरों मे बडे नही होते है तो उनकी अहमियत हरक्षण महसूस की जाती है । इसलिए वृध्दों की सेवा और प्रेम भाव का व्यवहार अनिवार्य रूप से करना चाहिए ।

उन्होंने कहा कि मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह मे उलझा हुआ है और इनसे मुक्ति का उपाय भगवान की भक्ति से होना बताया गया है और व्यक्ति पूजा-पाठ भी करता है लेकिन उसमे वैसा भाव नही होता है, जैसा प्रेम भाव भक्त प्रहलाद, घ्रुव, मीरा, शबरी आदि ने दिखाया था और परमात्मा के दर्शन प्राप्त किये ।
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कथा मे भगवान नरसिंह अवतार प्रसंग के वाचन के साथ इसका सजीव चित्रण किया गया, कथा के दौरान भजनों के दौरान महिला-पुरुष श्रोताओ ने भावविभोर होकर नृत्य किया ।

संपादक

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