देवास। मध्यप्रदेश में बीते 15 सालों से वनवास झेल रही कांग्रेस की मुश्किल प्रदेश की वो सीटें है, जो भाजपा का गढ़ कहलाती है। इनमें 25 सीटें ऐसी है जहां पिछले 20-25 साल से कांग्रेस जीत के लिए तरस रही है। इनमें सबसे अहम सीट है देवास…, जहाँ पिछले 28 सालों से भाजपा का कब्जा है।

भाजपा का अभेद्य गढ़ कही जानेवाली इस सीट पर 1990 से 2013 तक एक ही उम्मीदवार तुकोजीराव पवार का कब्जा रहा। देवास राजघराने के महाराज तुकोजीराव पवार के निधन के बाद 2015 में यहां उपचुनाव हुए, जिसमें उनकी पत्नी गायत्री राजे पवार ने भाजपा को यहां से लगातार सातवे चुनाव में बड़ी जीत दिलाई।
1990 से 2013 के बीच छह बार विधानसभा चुनाव हुए और श्री पवार के निधन के बाद 2015 में एक उपचुनाव।
कांग्रेस ने यहां हर तरह का गणित आजमाकर देख लिया लेकिन जीत के सारे मंत्र यहां फेल हो गए। इस दौरान कांग्रेस की जमीन बीते दो दशक में ज्यादा खिसकी है।
1990 में युवराज तुकोजीराव पवार अपना पहला चुनाव लड़े थे। उन्होंने कांग्रेस के सुरेंद्रसिंह जामगोद को 16152 मतों से शिकस्त देकर विधानसभा में प्रवेश किया था। उसके बाद 1993 में 62726 मत प्राप्त कर अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस के चंद्रप्रभाष शेखर को 20912 मतों से हराया। मतांतर की यह लीड 1998 में उस समय कुछ कम हुई थी, जब रतनलाल चौधरी कांग्रेस से चुनाव लड़े थे। उस समय तुकोजीराव पंवार 6103 मतों से जीते थे। 2003 के चुनाव में एक बार फिर श्री पंवार ने जयसिंह ठाकुर को 22119 मतों से करारी शिकस्त दी। उसके बाद मतांतर का फासला बढ़ता ही गया। 2008 में फिर तुकोजीराव पंवार ने कांग्रेस के हाजी हारून शेख को 25227 मतों से बड़ी शिकस्त दी। उसके बाद 2013 के चुनाव में तो उन्होंने अपने ही सारे रिकॉर्ड ध्वस्त करते हुए 100660 मत प्राप्त किये और कांग्रेस की रेखा वर्मा को 50119 मतों करारी शिकस्त दी। इस दौरान श्री पंवार शिवराज के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री भी रहे।
2015 में हुए उपचनाव में गायत्री राजे पंवार कांग्रेस के जयप्रकाश शास्त्री को 30778 मतों से शिकस्त देकर विधानसभा में पहुंची। चुनाव जीतने के बाद गायत्री राजे पंवार ने उन सारी भ्रांतियों को तोड़ दिया कि राजघराने की महारानी जनता के बीच नजर आएंगी भी या नही। जी हा.. चुनाव जीतने के बाद से ही वे सतत जनता के बीच रही। लगभग हर कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति वह भी समय पर। उन्होंने हर मौके पर अपने आपको एक अच्छा जनप्रतिनिधि साबित करने में कोई कसर नही छोड़ी। अब चुनावी मैदान में जनता को बताने के लिए उनके पास तमाम विकासकार्य और उपलब्धिया है, वहीं कांग्रेस के पास मुद्दे भी कम नही है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो देवास विधानसभा सीट में राजघराने का प्रभाव साफ नजर आता है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस का सारा दारोमदार टिकट पर निर्भर करता है, की अबकी बार कांग्रेस किसे मैदान में उतारती है।