उज्जैन 22 अगस्त। सावन- भादौ महीने के हर सोमवार को बाबा महाकाल की महावैभव सवारी निकाली जाती है। आज (22 अगस्त को) महाकाल की आखिरी सवारी निकली। इस दौरान भक्तों की भारी भीड़ रहती है। इस सवारी में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हुए । सिंधिया हर साल इस महावैभव सवारी में शामिल होते हैं। रामघाट में महाकाल की सवारी की पूजा की।

दरअसल, ऐसी परंपरा है कि बाबा महाकाल की महावैभव सवारी में सिंधिया परिवार का कोई-ना कोई सदस्य शामिल होता था। ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले उनके पिता माधवराव सिंधिया भी इस सवारी में शामिल होते थे। आइए जानते हैं क्या है परंपरा।
सिंधिया परिवार ने शुरू की थी महावैभव सवारी की परंपरा
उज्जैन में सावान महीने में निकले वाली महावैभव सवारी की परंपरा की शुरुआत सिंधिया राजवंश से की गई थी। लेकिन पहले केवल दो या तीन सवारियां निकाली जाती थी। बाद में इसे बढ़ा दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि सिंधिया राजवंश ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। दरअसल, मराठा साम्राज्य विस्तार के लिए निकले सिंधिया राजवंश के संस्थापक राणोजी सिंधिया की विजय यात्रा जब उज्जैन पहुंची तो उन्होंने महाकाल मंदिर का हाल देखकर दुख हुआ।
उन्होंने अपने राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया था कि मैं बंगाल से जब तक वापस आऊं तब तक उज्जैन में महाकाल का भव्य मंदिर तैयार हो जाना चाहिए ।महाकाल का भव्य मंदिर बनने के बाद राणोजी सिंधिया ने यहां पहली बार पूजा की थी।
आज भी जलता है दीपक
ऐसा बताया जाता है कि तब से लेकर आज तक आज भी सिंधिया राजवंश की तरफ से एकअखंड दीप महाकाल की मंदिर में चलता है। इस अखंड दीप का खर्च भी सिंधिया परिवार के द्वारा उठाया जाता है। उज्जैन में महावैभव परंपरा की शुरुआत करने के बाद हर साल सिंधिया वंश के राजा इस पूजा में शामिल होते थे। तब से यह परंपरा चली आ रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया आज भी इस परंपरा को कायम किए हुए हैं।
उज्जैन में नहीं रूकता सिंधिया वंश का कोई राजा
उज्जैन में बाबा महाकाल को राजाधिराज कहा जाता है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि महाकाल के अलावा यहां कोई दूसरा राजा नहीं रूक सकता है। ऐसे में सिंधिया वंश का कोई भी व्यक्ति उज्जैन में रात्रि विश्राम नहीं करता है।