नागरिकों के आत्मबल से भारत होगा संक्रमण मुक्त

प्रत्येक मनुष्य के शरीर मे आत्मबल या आंतरिक ऊर्जा निहित है। यह आंतरिक ऊर्जा ही वह रोग प्रतिरोधक क्षमता है, जिसका जिक्र वर्तमान दौर में अधिक किया जा रहा है। इस आंतरिक उर्जा में बड़ी से बड़ी बीमारियों को परास्त करने की शक्ति है। बरसो से मनुष्यो ने अपने शरीर मे निहित इसी आत्मबल या आंतरिक ऊर्जा के बल पर घातक बीमारियों को न सिर्फ परास्त किया अपितु उसे जड़-मूल से खत्म करने में भी सफलता प्राप्त की है। ऐसे अनेकों किस्से हमारे आसपास बिखरे पड़े है, जिसमे उच्च मनोबल से ही घातक एवं लाइलाज बीमारियों से लड़कर उभरने में सफलता मिल पाई है। भारतीय टीम के धाकड़ बल्लेबाज युवराजसिंह को कौन नहीं जानता जिन्हें लंग्स में केंसर हो गया था। उन्हें अनेको बार कैमियोथैरेफी की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। अपनी आंतरिक ऊर्जा एवं व्यवस्थित उपचार से वें केंसर को हराने में सफल भी हुए ओर क्रिकेट के मैदान में भी उतरे। अपने नाम के अनुरूप बल्लेबाजी भी की। एक ओर क्रिकेटर है, इंग्लैंड के ज्योफ बायकॉट जो बाद में कमेंट्री करने लगे थै। उन्हें गले मे केंसर हुआ 35 बार कैमियोथैरेफी की प्रक्रिया गुजरे अपने आत्मबल से कैंसर को परास्त किया और पुनः कमेंट्री की दुनियाँ में पदार्पण किया। वर्तमान दौर के बढ़ते सक्रमण में भी अनेको किस्से ऊंचे मनोबल ओर दृढ़ इच्छाशक्ति के हमारे सामने मौजूद है। ताजातरीन मामला उज्जैन निवासी शांतिबाई दुबे का है। 97 वर्षीय इस बुजुर्ग महिला ने संक्रमण को पराजित किया और अपने जन्मदिन रामनवमी को स्वस्थ्य होकर घर पहुची। शांति देवी का जन्म 1925 में रामनवमी के दिन ही हुआ था। उन्हें 8 अप्रेल को इंदौर के इंडेक्स मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया था। यहां उन्हें आक्सीजन पर रखा गया था। जानकारी के मुताबिक उन्हें 80 प्रतिशत लंग्स इंफेक्शन था। शांतिबाई ने कोरोना को मात दी और स्वस्थ्य होकर अपने घर पहुंची।
असल में इस समय हमारे दिमाग मे कोरोना फोबिया हो चुका है। जिसका कारण एक जैसी खबरों का रोज-रोज सुनाई देना। सोशल मीडिया के माध्यम से संक्रमण की यह खबरे घर-घर तक पहुच रही है,जो हमारे आत्मबल यानी प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित कर रहीं है।
वर्ष 2006 की एक फ़िल्म है, \’लगे रहो मुन्ना भाई\’ इस फ़िल्म में मुरलीप्रसाद का चरित्र अभिनेता संजय दत्त ने निभाया है। मुरली प्रसाद शर्मा को \”केमिकल लोचा\” हो जाता है। इस केमिकल लोचे की वजह से उन्हें महात्मा गांधी दिखाई देते है,उनसे बात करते है,समस्याओं को सुलझाने में उनकी मदद करतें है। मुरलीप्रसाद की यह स्थिति लगातार गांधी जी के बारे में सोचने से निर्मित होने की बात डॉक्टर उन्हें बताते है। कोरोना के इस दौर में लगातार एक जैसी खबरों ने हमारे समाज के बहुत से नागरिकों को भी यह केमिकल लोचा होता दिख रहा है। साधारण सर्दी खासी,पेट दर्द, सीने में दर्द होने पर सिर्फ कोरोना होने का ख्याल ही आता है। यह परेशानियां कोरोना संक्रमण के पहले भी होती थी, जिसे सामान्य घरैलु उपचार से ही ठीक कर लिया जाता था। किन्तु अब दिमाग मे हुए परिवर्तन की वजह से कोरोना-कोरोना ही दिखाई देने लगा है। अब सवाल उठता है इस भय से कैसे उभरे अपने आत्मबल की शक्ति को जागृत कैसे किया जाए। ऐसा करने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। यह मानकर चले कि आपके शरीर मे वह क्षमता जिसे रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते है,मौजूद है जो संक्रमण को मात दे सकती है। खुशनुमा मॉनसिक नजरिए से शरीर को बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती है। खुशनुमा मॉनसिक नजरिये का निर्माण प्रार्थना,ध्यान,भजन कीर्तन,गीत गजल,व्यायाम के साथ अधिक से अधिक व्यस्थ्य रहने से होगा। अपनी रुचि के अनुसार कार्य करे। चिंताओं से मुक्त होने का प्रयास करे। मन मे उपजी चिंताओं का तथ्यात्मक अध्ययन करें। उन्हें अपनी मानसिकता पर हावी नही होने दे। आप देखेंगे यह महामारी भी अन्य संकटो की तरह गुजर जाएगी। जीवन फिर से पटरी पर लौटेगा। एक बात और सुरक्षा के उपायों का कठोरता से पालन जरूर करें मास्क पहने,बार-बार हाथ धोएं , सोशल डिस्टेंस का पालन करें , वैक्सीन जरूर लगवाए। एक अच्छी खबर जो इजराइल से आ रही है। वहां की सरकार ने इजरायल को कोरोना मुक्त देश घोषित कर दिया है,मास्क की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है। इजरायल दुनियाँ का पहला देश है जिसने कोरोना महामारी से मुक्त होने की घोषणा की है। वहां 16 वर्ष से अधिक उम्र के 81प्रतिशत लोगो को वैक्सीन लग चुकी है। भारत मे भी वैक्सीन की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। इसे ओर तेज करने की आवश्यकता है। इजरायल की तरह भारत भी संक्रमण से जल्द मुक्त होगा। इसके लिए टीकाकरण को प्राथमिक अभियान तो बनाना ही होगा, नागरिकों को आत्मबल भी बनाएं रखना होगा।
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नरेंद्र तिवारी \’पत्रकार\’
7,शंकरगली मोतीबाग
सेंधवा जिला बड़वानी मप्र
मोबा-9425089251

Rai Singh Sendhav

संपादक

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