महंगी दवाइयों से परेशान हो रहे हैं पीड़ितों के परिजन….
चार से साढ़े पांच हजार रुपये में बिक रहा रेमेडेसीवीर इंजेक्शन…
निजी नर्सिंग होम में आईसीयू और प्राइवेट वार्ड के चार्ज आसमान पर….
मरीजों को ना तो नर्सिंग होम और निजी अस्पताल बिल दे रहे हैं और ना ही मेडिकल वाले…

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देवास। कोरोना की दूसरी लहर ने एक बार फिर कोहराम मचा दिया। मध्य प्रदेश के कई जिलों में संडे लॉकडाउन है। देवास जिले में भी रोजाना लगभग तीन दर्जन मरीज निकलने लगे हैं। इस बार निजी अस्पताल और नर्सिंग होम को कोविड-19 के इलाज की छूट होने से कोविड मरीजों को सुविधा बढ़ने की बजाय फजीहत बढ़ गई है। शहर के निजी अस्पताल और नर्सिंग होम आपदा में अवसर तलाशने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे। देवास में कोविड के इलाज के नाम पर अंधाधुंध लूट मची है। रेमडेसीविर इंजेक्शन एक बार फिर कालाबाजारी की भेंट चढ़ा है। 4 से 6 हजार में यह इंजेक्शन खरीदना पड़ रहा है जबकि आईसीयू के चार्जेस 6 से 10 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से वसूले जा रहे हैं।
किसी भी परिवार में एक व्यक्ति के कोविड-19 पॉजिटिव आ जाने पर डेढ़ से 2 लाख रुपये खर्च होना मामूली बात हो गई। अगर मरीज थोड़ा गंभीर है तो यह खर्च 4 से 5 लाख पहुंच जाता है। देवास में अमलतास के अलावा विनायक हॉस्पिटल, प्राइम नर्सिंग होम, एपेक्स, देवास हॉस्पिटल, संस्कार में कोरोना का इलाज हो रहा है। इन्हीं में से कुछ अस्पतालों में भर्ती मरीजों के परिजनों ने नाम उजागर नहीं करने का निवेदन करते हुए बताया की रेमडेसीविर इंजेक्शन के नाम पर जमकर लूट मची है। एक मरीज के परिजन के मुताबिक रात 10:00 बजे इंजेक्शन लगने का समय दिया गया था। नर्सिंग होम के मेडिकल स्टोर पर सुबह तो कहा गया कि शाम तक आ जाएगा। फिर शाम में बताया गया है कि इंजेक्शन की शॉर्टेज है थोड़ा महंगा मिल पाएगा। रात 10 बजे तक इंजेक्शन उपलब्ध नहीं होने पर फिर मनमानी कीमत वसूली जाती है। रेमेडीसीवीर इंजेक्शन के अलावा अन्य दवाइयां भी महंगी एमआरपी वाली लिखी जाती हैं जो रोजाना साढ़े सात हजार से 9 हजार तक की होती हैं। प्रिस्क्राइब की जा रही दवाइयां जो नर्सिंग होम के मेडिकल पर साढ़े 7 हजार की मिलती हैं वही दवाइयां बाहर अन्य मेडिकल स्टोर पर 2850 रुपए में मिल रही हैं, लेकिन मरीजों के परिजन इस बात से डरे रहते हैं की अगर बाहर कोई दवाई नहीं मिली तो फिर उनके लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी इसलिए वहीं से दवाइयां खरीदना भी मजबूरी बताते हैं। एक मरीज के परिजन के मुताबिक जो एनएस हंड्रेड एमएम की बोतल नर्सिंग होम के मेडिकल स्टोर पर ₹80 एमआरपी पर मिल रही है जबकि बाहर के मेडिकल स्टोर पर वही बोतल पंद्रह से 17 में रुपए में बिक रही है।
इतना ही नहीं शहर के निजी अस्पतालों में कार्यरत स्टॉफ़ कोविड काल के चलते परेशान है दबी जुबान स्टाफ कर्मचारी कहते हैं मात्र 6 से 8 हजार में यहां कोविड मरीजों के बीच काम करना पड़ा रहा है ना तो पीपीई किट मुहैया कराई जा रही है और ना ही उच्च गुणवत्ता के मास्क। जूनियर स्टाफ तो चार से 5000 में काम कर रहा है और यही वेतन यहां सफाई कर्मचारियों को दिया जाता है जबकि कोविड कॉल में बड़ा रिस्क है।
आपको बता दें निजी नर्सिंग होम और उन में संचालित मेडिकल स्टोर की अंधेरगर्दी पर नियंत्रण करने के लिए उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह ने रेमडेसीविर इंजेक्शन की कीमत अधिकतम ढाई हजार रुपए और टाजूलोमेक इंजेक्शन की कीमत 35000 रु प्रति इंजेक्शन निर्धारित कर दी है। उज्जैन कलेक्टर के आदेश में स्पष्ट कहा गया है उक्त आदेश का पालन नहीं करने पर अथवा सौंपे गए दायित्वों का निर्वहन नहीं करने पर इसे अत्यावश्यक सेवाओं में कार्य करने से इंकार की श्रेणी में माना जाएगा । संबंधित संस्था के विरुद्ध अत्यावश्यक सेवा संधारण तथा विच्छेद निवारण अधिनियम 1979 की धारा 7 , आपदा प्रबंधन एक्ट 2005 की धारा 51 बी ,56 एवं महामारी एक्ट 1897 की धारा 3 के प्रावधानों के साथ भारतीय दंड विधान की धारा 187, 188, 269 ,270 व 270 के तहत दंडात्मक कार्यवाही की जावेगी।
जबकि रेमडेसीविर इंजेक्शन सहित अन्य दवाइयों की अधाधुंध कीमतें देवास में वसूली जा रही हैं और ग्राहकों को बिल भी नहीं दिए जा रहे हैं। कोविड महामारी से जूझ रहे लोगों को इस शोषण से बचाने के लिए देवास कलेक्टर को भी चाहिए कि वह उज्जैन कलेक्टर की तर्ज पर ना सिर्फ देवास में ऐसे आदेश जारी करें बल्कि एक टीम गठित कर उसे समय-समय पर निरीक्षण अवलोकन का जिम्मा भी दिया जाए और अस्पताल नर्सिंग होम तथा मेडिकल स्टोर संचालकों को बिलिंग कर ग्राहकों को दिया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए।