शिव विवाह प्रसंग के साथ बताई अष्टांग योग की महिमा…
अंकित कांठेड़

हाटपीपल्या । मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए । क्रोध वह अग्नि है जो स्वयं को जलाती है । क्रोध करने से स्वयं को हानि होती है दूसरे की नहीं । चन्द्रवाल कॉलोनी में आयोजित कथा में यह कहते हुए साध्वी अखिलेश्वरी जी ने रविवार को दक्ष का अभिमान शिव- सती प्रसंग के साथ भगवानकपिल व देवहूति प्रसंग सुनाया ।
दीदी मां ने कहा कि दक्ष ने अभिमान के कारण भगवान शंकर को यज्ञ में नही बुलाया तो देवी सती को इतना क्रोध आया कि उन्हें अग्नि में समर्पित होकर जीवन को समाप्त करना पड़ा । दीदी मां ने कहा कि क्रोध व्यक्ति को विवेकहीन बना देता है क्रोध वह एक ऐसी अग्नि है जो दूसरों को जलाने से पहले स्वयं को भस्म करती है । इसलिए इस अवस्था में मनुष्य न करने योग्य कार्य करने को तैयार हो जाता है । मन पर,नियंत्रण,धैर्यता
सहजता जैसे गुण यदि व्यक्ति में है तो वो उस ज्वाला को स्वयं शांत कर लेगा ।
बताई योग की महिमा….
साध्वी जी ने अष्टांग योग की महिमा बताने वाले भगवान कपिल व देवहूति प्रसंग को सुनाया । उन्होंने कहा कि हमारे सनातन राष्ट्र में अष्टांग योग की बड़ी महिमा है जिससे हम मन आत्मा शरीर पर नियंत्रण रख पाते है उसी योग से क्रोध को भी जीत जा सकता है, और जिसने क्रोध को जित लिया, उसने अपने मन को जित लिया”. मन जितने के बाद मनुष्य विजेता बन जाता है और विजेता ही सफल है, जो सफल है,उसी का जीवन सहज, सरल और सुन्दर है इसलिए साध्वी जी ने कहा दैनिक जीवन में भी योग का बहुत महत्व है । आज की कथा में आरती पूजन श्रीमती संगीता दिनेश प्रजापत एवं समिति अध्यक्ष श्रीमती नर्मदा बाई कैलाश चंद्र विश्वकर्मा, श्रीमती रेखा शेखर तंवर, श्रीमती मयुरी मुकेश राठौर, श्रीमती शोभा व्यास, गुड्डू चंद्रवाल, रुप शर्मा, राजेंद्र शर्मा, चंपालाल गोलिया, रामगोपाल अकैन, राधैश्याम वैष्णव, विजय ठाकुर, विनोद गुर्जर, कमल अजमेरा, कालु राजपूत एवं सैकड़ों की संख्या में महिला पुरुष बच्चे उपस्थित थे ।