धर्म के रास्ते पर चलने से ही कल्याण होता है

देवास। परम पूज्य संत रावतपुरा सरकार के सानिध्य में चले रहे चातुर्मास व्रत अनुष्ठान के अन्तर्गत आज आनंद भवन पेलेस स्थल पर भगवताचार्य नारायण प्रसाद जी ओझा के मुखारविन्द से चल रही भागवत कथा तृतीय दिवस पर भगवन संकीर्तन के साथ प्रारंभ हुई महाराज श्री ने संतो की महत्ता का बखान करते हुए कहा कि महात्मा अपनी चेतना से रूबरू हो जाते है लेकिन हम चेतना से नहीं जुडते है आत्मा से नहीं जुड़ते है हम देह भाव से जुड़ते है इसलिए छोटी छोटी परेशानीयां हमें परेशान करती रहती है क्योंकि हम देह की पूजा करते है देह को सत्य मानते है देह साधन है सत्य नहीं है देह के साथ तीर्थो तक जा सकते है साधन को हमने साध्य मान लिया इसलिये इसका हम उपयोग नहीं कर पाते है। विरोध नहीं प्रेम होना चाहिए।

Rai Singh Sendhav

महाराज श्री ने कहा कि सुखदेव जी महाराज राजा परीक्षित को कथा सुना रहे है। राजा उत्तानपाद की दो रानीयां थी एक सुनीती ओर एक सुरूची थी बडी सुनीती थी उनका एक पुत्र था ध्रुव जिसने छत्तीस हजार वर्षो तक राज्य किया और आज भी गगन में चमक रहा है इमानदार व्यक्ति धन सम्पत्ती भले ही नहीं पाये लेकिन उनका यश इतना होता है कि लोग उन्हें याद करते रहते है शरीर के नहीं रहने पर भी वह समाज में जिन्दा रहता है शास्त्रों का काम होता है रास्ता दिखाना उस रास्ते पर हमे चलना चाहिये धर्म शास्त्र जीवन का रास्ता दिखाते है।
कथा में आगे महाराजश्री ने बताया एक दिन ध्रुव जी ने अपनी माताजी से पूछा कि मेरे पिताजी मुझसे नही मिलते, प्यार नहीं करते है ऐसा क्यों, राजा उत्तानपाद छोटी रानी के पास रहते थे तथा ध्रुव की माताजी उनसे अलग रहती थी इसलिए वह ध्रुव को कुछ उत्तर न देकर इधर उधर की बात करके बहला फुसला देती है। ध्रुव जी ने अपने मित्रों से बात की मित्रों ने कहा कि उदास क्यों होते है तुम्हारे पिताजी तो चक्रवती सम्राट है हम उनसे मिलवायेंगे। ध्रुव अपने मित्रों के साथ राजा से मिलने पहुंचते है ध्रुव को देखकर राजा भाव विभोर हो जाते है तथा ध्रुव को अपनी गोदी में बिठा कर खूब स्नेह करते है। यह सब देख राजा की दुसरी पत्नी सुरूची घबड़ा जाती है ओर उसे लगता है कि राजा ध्रुव को राज पाट दे सकते है ऐसा विचार करके सुरूची क्रोध करते हुए ध्रुव को राजा की गोद से नीचे उतार देती है। महाराज उत्तानापाद कुछ बोल नहीं पाते है हताश और निराश वापस आते है तथा अपनी माताजी को पुरा वृतांत सुनाते है उनकी माताजी उन्हें धर्म का उपदेश देती है और कहती है बेटा पिता से बड़ी गोद तो परमात्मा की होती है तुम परमात्मा की खोज करों ध्रुव इतना सुनते ही जंगल में निकल जाते है और भगवान की खोज में लग जाते है उनकी भक्ति से भगवान प्रसन्न होकर प्रकट होते है और उन्हें आर्शिवाद देते है ध्रुव ने छत्तीस हजार वर्षो तक राज्य किया और ओर परम पिता परमात्मा की कृपा से आज भी अजर अमर होकर आकाश में ध्रुव तारा के रूप में विराजीत हो गये महाराज श्री कहते है जो श्रध्दा और भक्ति से भगवान को भजता है भगवान पर उनकी कृपा हो जाती है। आज की आरती आयोजक विधायक गायत्री राजे पवार के हाथों सम्पन्न हुई। आरती के पश्चात अभिमंत्रित रूद्राक्षों का वितरण किया गया।

संपादक

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