देवास। आनंद भवन पेलेस पर चल रहे चातुर्मास व्रत अनुष्ठान में राम कथा के दौरान आज श्री सुलभ शांतु जी महाराज ने केवट का प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में लिखा है वनवास के दौरान भगवान राम, माता जानकी और लक्ष्मण जी विचरण करते करते गंगा जी के तट पर पहुंचते है। जहां वे केवट से उस पार चलने के लिए नांव मागते है।

यहां पर यह उल्लेखनीय है कि वे नांव लेकर चलने का नही कहते वरन नांव मांगते है केवट नांव नही लाता है वह कहता है मैंने तुम्हारा मर्म जान लिया है तुम्हारें चरण कमलों की धूल के लिए लोग कहते है कि वह पत्थर को भी नारी बना देती है हमारी नांव तो लकड़ी की है वो आपको छूने से नारी बन जायेगी तो फिर मेरा क्या होगा मेरा ओर मेरे परिवार का भरण पोषण तो नांव चलाकर ही होता है इसलिय मैं पहले आपके पांव पखारूंगा और उसके बाद गंगा पार उतारूंगा। केवट ज्ञानी था वह समझ गया था कि यह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है ये परमपिता परमेश्वर भगवान श्री राम है जो मानव का जीवन धारण कर जग का कल्याण करने के लिये धरती पर आये है केवट ने अपने पुरे परिवार सहित राम जी के चरणों को पखार कर सब के जीवन का उध्दार करवा दिया। गंगा के उस पार उतारने के बाद केवट ने दंडवत प्रणाम किया। राम जी ने मन में सकोच किया कुछ देना चाहिये केवट को लेकिन हमारे पास तो कुछ नही है सीता जी राम जी के मन को जान गई उन्होंने अपनी हाथ से मुद्रिका उतारी और राम जी की ओर बढ़ा दी राम जी केवट को देने लगे केवट ने कहा भगवान एक जेसे काम करने वाले एक दुसरे से कुछ लेते नहीं है यह सुनकर लक्ष्मण जी ने पूछा कि प्रभु का ओर तुम्हारा काम एक जेसा केसे हो गया तब केवट कहता है कि आप भवसागर से पार करते है और में गंगा पार करता हूं। मेरा आपसे निवेदन है जिस तरह मैंने आपको गंगा पार किया उसी तरह आप मुझे भवसागर से पार कर देना।
तुलसीदास जी लिखते है कि जो भी केवट के इस प्रसंग को सुनता है वह जन्म जन्मांतरण के चक से मुक्त हो जाता है। महाराज श्री ने घर पर विराजीत भगवान का वर्णन करते हुए कहा कि हमारे घर के जो हनुमान है इन भगवान और किसी बड़े मंदिर में जो भगवान है उन दोनों में कोई अंतर नहीं है जितनी कामना किसी बड़े मंदिर में करते है यदि उतनी ही श्रध्दा रखकर उतने ही भाव के साथ अपने घर के मंदिर में बैठे भगवान से भी करेगे तो आपकी हर इच्छा ओर कामना फलीभूत होगी और यदि सेवा में भाव नही प्रार्थना श्रध्दा नहीं तो तो फिर कहीं भी चले जाए कोई अंतर नहीं पढ़ने वाला है। कभी कभी तो ऐसा होता है कि हम अपने घर के भगवान को छोड़कर अन्यत्र चले जाते है कई लोग रामनवमी आयी तो परिवार सहित अयोध्या चले गये और घर के भगवान का न तो स्नान हुआ ना नैवेध लगा ना आरती हुई। क्या राम जी अयोध्या में केवल नवमी पर ही रहते है अन्य दिनों में राम नहीं रहते दो दिन बाद वहां नही रहेंगे बाहर तो 56 भोग लगा रहे हो और घर में बैठे भगवान भूखे बैठे है यह कैसा भेद है तुमने घर में बैठे राम को असली राम माना ही नहीं ऐसा मान लिया कि घर में बैठे राम हमारी बड़ी इच्छा को कैसे पूरी कर सकते है उसके लिये तो अयोध्या के राम की जरूरत है फिर तो हो गया काम मैं तो कहता हूं प्रगाढ़ श्रध्दा ओर अपार आस्था है तो कही जाने की जरूरत नहीं राम तो अपने भक्तों के पास खुद चलकर आते है। आयोजक विधायक राजमाता गायत्री राजे पवार एवं महाराज विक्रमसिंह पवार ने बताया कि चातुर्मास व्रत अनुष्ठान के अन्तर्गत आज श्रध्देय संत सिरोमणी रविशंकर जी महाराज के सानिध्य में सावन के द्वितीय सोमवार पर भगवान सीताराम जी का लक्ष्यार्धन ( एक लाख अर्चन ) अनुष्ठान सम्पन्न हुआ पूज्य महाराजश्री ने तुलसीदल एवं 221 भक्तों ने 20 क्विंटल फूलों से भगवान का विधि विधान से अर्चन किया।