(30 मई , हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर सभी पत्रकार बंधुओं को सब इंस्पेक्टर पवन शर्मा की स्वरचित कविता सादर समर्पित)

ये पत्रकारों की कहानी है
जो दिख रहा है लिख रहा है बोलता है
जो धूप बारिश आंधियों मे डोलता है
जिंदगी की व्यस्ततम रस्साकशी मे
हर घटित घटना की परतें खोलता है
लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ जो
खुद व्यथा को आज अपनी तोलता है
क्या हाल हैं मत पूछिये
हर हाल मे खुशहाल हैं
बचपन बुढापा क्या जवानी है
दोस्तों ये पत्रकारों की कहानी है
प्रजातंत्र की दीवारों पर जो सच्चाई लिखता है
खबर खोजने अक्सर ,दुष्कर राहों में दिखता है
न करता जो फिक्र जान की दंगे और फसादों मे
न हटता है पीछे जो जनहित के सभी इरादों मे
करता है प्रहार लेखनी से जन गण के खातिर जो
नये नये कृतित्वों मे जिसकी निष्पक्ष रवानी है
दोस्तों ये पत्रकारों की कहानी है
जिसमें सच को सच कहने का साहस होता है
क्रुद्ध भीड़ मे घुसने का दुस्साहस होता है
सर्दी हो या भीषण गर्मी रिमझिम पावस होता है
पूनम का चांद नहीं वह सदा अमावस होता है
घटनाओं की तह मे जाकर नयी इबारत लिखता है
कहीं आग मे दिखता है जो कभी बाढ़ मे दिखता है
कदम उठाने से पहले ही उसको कलम उठानी है
दोस्तों ये पत्रकारों की कहानी है
पवन शर्मा, शाजापुर