1600 किलोमीटर की यात्रा करता एक परिवार
सोनकच्छ ( संदीप गुप्ता)। देश के बंटवारे के बाद, कोविड लॉकडाउन जनित अब तक की सबसे बड़ी मानव पलायन त्रासदी ने हमारी आर्थिक, सामाजिक और विशेषकर राजनीतिक व्यवस्था के खोखलेपन को पूरी तरह से बेपर्दा कर दिया है। कई दिनों तक भूखे प्यासे थके हारे ढोर डंगर – माल गोरू की तरह अनिश्चितता की तरफ बढ़ते हमारे प्रवासी मजदूर एक पूर्णतय: ध्वस्त और असंवेदनशील सरकारी व्यवस्थाओं का हाल बयां कर रहे हैं।
आज मजदूर वर्ग कोरोना काल के चलते सभी काफी परेशान व बेहाल है। हमारे देश का मजदूर जो पूरे देश के निर्माण,विकास ,उत्पादन के साथ साथ रोजमर्रा के कार्यो में लगने वाली छोटी छोटी जरूरतों की पूर्ति का माध्यम बनता है। आज वही मजदूर अपने पेट की भूख मिटाने के लिए मिलो पैदल ,सायकल व ऑटो से चलता नजर आ रहा है। उसे तो बस अब अपने परिवार के साथ अपनी भूख मिटाने के अलावा और कुछ दिखाई ही नही दे रहा है। बिना कुछ सोचे समझे अपनी गरीबी को अपने कंधे पर लादे नग्गे पाँव भूखा चला जा रहा है। मानो जैसे उसे यह मालूम है कि अब उसे अपने वतन (घर) के अलावा और कही भी कुछ नही मिलेगा।सरकारों के बड़े बड़े दावे झुठे नजर आ रहे है। मजदूर जो सालो से जहाँ काम करता आ रहा है। आज उसे उसी जगह पर कोरोना के चलते दो वक्त की रोटी भी नसीब नही हो रही है। इसलिए अब परेशान होकर अपने वतन (घर) लौटने के लिए मजबूर हो चुका है।

1600 किलोमीटर की यात्रा करता परिवार-
पलायन के इस सिलसिले में आज सोनकच्छ बायपास पर सायकल से 1600 किलोमीटर की यात्रा करता एक परिवार नजर आया। जो मुम्बई महाराष्ट्र के पनवेल से यूपी के कौशाम्बी जा रहा है। ये सभी पनवेल में कपड़े धोने व स्त्री करने का कार्य करते थे। जिससे इनका गुजारा अच्छे से चलता था। कौशाम्बी के भय्यन जी बताते है कि हम 10 वर्ष पूर्व काम की तलाश में पनवेल मुम्बई (महाराष्ट्र)चले गए थे। जहां हमेंं कपड़े धोने व स्त्री करने का काम मिल गया। जो कि धीरे धीरे अच्छा चलने लगा तो हमने अपने अन्य भाइयो व रिश्तेदारों को भी वहां बुला लिया । क्योकि यूपी में रोजगार की कमी थी इसलिए हम वहां चले गए थे। लेकिन लॉक डाउन के चलते हमारे पास जो भी रुपया था खर्च हो गया। अब हमारे पास खाने तक को नही है। हम लोगो ने कुछ पुरानी सायकले खरीदी जिन्हें ठीक करके हम सभी अपने वतन की तरफ लौट रहे है। मेरा यह 10 साल का बच्चा शुभम जो कि बिना ब्रेक की सायकल लिए है। धीरे धीरे हमारे साथ आगे आगे चल रहा है।जिसे देखकर हमेंं भी हिम्मत मिल रही है।रास्ते मे कुछ जगहों पर हमें खाना मिल रहा है व कुछ जगहों पर रात में रुकते है तो गाँव वालों से मदद मिल जाती है। मोबाईल तो हमारे पास है लेकिन हम अभी तक चार्ज नही कर पाए है। इसलिए हमारे मोबाईल बन्द है घर वालो से पिछले 2 दिनों से कोई सम्पर्क नही हो पाया है। अब हम वापस नही जायेंंगे हम अपने गाँव मे ही रह कर दाड़की मजदूरी करेंगे ।
छलक आए आंखों से आंसू-
भय्यन जी के साथ जा रहे सुनील, लवकुश, अंकित व सरवन का कहना है कि हम मजदूर के घर क्योंं पैदा हुए जो हमे इतनी ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इससे अच्छा था कि हम लोग मर जाते। सरवन की यह बात सुन के भय्यन जी रोने लगे व यह कहने लगे कि हे भगवान हमे इस भूख से बचाले या हमे अपने गले लगा लेंं।