नियम-संयम से होता है गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वहन
बागली,(सोमेश उपाध्याय)।गत दिनों नगर में स्थित वैदिक गुरुकुल वाग्योग चेतना पीठम पर यहां की गुरुकुल परम्परा के अवलोकन हेतु विदेशी सन्त पधारे।मूलतः फ्रांस एवं केनेडा के रहने वाले शक्तिपात परम्परा के संन्यासी स्वामी सुमेरमुनिजी एवं हंसमुखमुनिजी महराज के प्रवास का मुख्य उद्देश्य प्राचीन दिव्य गुरुकुल परम्परा का प्रत्यक्ष अवलोकन करना था।उन्होंने आश्रम के अधिष्ठाता मुकुन्दमुनि प.रामाधारजी द्विवेदी से वेद, वेदाङ्ग एवं उपनिषद् आदि विषयों पर चिंतन किया। आश्रम में प्रवास के दौरान गुरुकुल परम्परा का निर्वहन करने वाले विद्यार्थियों को प्रतिदिन योगाभ्यास, सन्ध्योपासना, अग्निहोत्र एवं मंत्र पाठ करते देख अत्यंत प्रभावित हुए।आश्रम में मुकुन्दमुंनी प.द्विवेदी के मार्गदर्शन में कर्मकांडी विद्वानों द्वारा वैदिक एव.सनातन संस्कृति के मूल्यों को अपनाकर ब्रह्म बटुकों को कर्मकांड के साथ ही नैतिक, वैदिक, बौद्धिक और आत्मबल के साथ व्यवहारिक शिक्षा दी जाति है।खास बात तो यह है कि इस आश्रम में संस्कृत पढ़ने वाले कितने ही लोग संस्कृत के क्षेत्र में देश-विदेश तक यहां की भूमि को गौरवान्वित कर रहे हैं। आश्रम में सीखे गए मंत्र और ऋचाओं के जरिए वह संस्कृत की अलख जगा रहे हैं।संस्कृत और संस्कृति की गतिविधियों को जीवंत रखने के साथ ही वाग्योग चेतना पीठम आश्रम अब विदेशों तक अपनी पहचान बनाए हुए हैं। आश्रम के अधिष्ठाता मुकुन्दमुंनी प.द्विवेदी कहते हैं कि भले ही समय बदले या लोगों के मन,यह आश्रम संस्कृत,संस्कृति एव.वेदों के प्रचार प्रसार के साथ संस्कारित शिक्षा के अपने उद्देश्यों को पूरा करता रहेगा।

गुरु-शिष्य परंपरा के साथ नियम-संयम भी
यहां गुरु-शिष्य परंपरा के साथ-साथ अन्य नियम-संयम पर भी ध्यान दिया जाता है, जिनमें संस्कृत एवं वैदिक अध्ययन,योग एव.नित्य कर्म शामिल है।यहां शिक्षक भी धोती-कुर्ता पहन कर आते है।